प्रिय साथियों,
महाराणा प्रताप पर कुछ भी लिखते समय मुझे सर्वप्रथम मेवाड़ के प्रसिद्ध व जाने माने वीर रस के कवि पंडित श्री नरेंद्र मिश्र जी  की ये पंक्तियां याद आती हैं

राणा प्रताप इस भारत भूमि के मुक्ति मंत्र के गायक है | राणा प्रताप आजादी के अपराजित काल विधायक है |
राणा प्रताप का स्वाभिमान जो झुकना नहीं जानता था , राणा प्रताप को दुश्मन भी अपना आदर्श मानता था |
राणा प्रताप थे कीर्ति पुरुष ,मेवाड़ मुक्ति का विजय तुर्य , आजादी के दुर्गम पथ को आलोकित करता हुआ सूर्य |
मिट्टी पर मिटने वालों ने अब तक जिसका अनुगमन किया , राणा प्रताप के भाले का , हिमगिरी ने झुककर नमन किया |
वह आजादी के सूत्रधार ,आसिन्ध धरा सत्कार हुआ , राणा प्रताप का भारत की धरती पर जय- जय कार हुआ |

मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि महाराणा प्रताप स्मारक समिति, मोती मगरी, उदयपुर अपने 63 वें वर्ष में प्रवेश कर रही है। इसकी स्थापना विक्रम संवत 2019 वर्ष 1962 में महाराणा प्रताप की स्मृतियों को चिर स्थायी बनाए रख़ने के लिए मेवाड़ के तत्कालीन महाराणा श्री भगवतसिंह जी मेवाड़ ऑफ उदयपुर के अथक प्रयासों से हुई थी।
महाराणा प्रताप स्मारक समिति के कार्यों को निरंतरता देते हुए मेवाड़ के महाराणा श्रीजी अरविंदसिंह जी मेवाड़ ऑफ उदयपुर के सक्रिय दिशा निर्देशन में स्मारक समिति ने नये आयामों को छुआ। महाराणा श्रीजी अरविंदसिंह जी मेवाड़ वर्तमान में समिति के मुख्य सरंक्षक के रूप में मार्गदर्शन दे रहे हैं।
उदयपुर ने अपना नाम देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में स्थापित किया है, जो समूचे मेवाड़ के लिए गौरव का विषय है। इस गौरव को स्थापित करने में कई बरस लगे हैं। मेवाड़ को दुनिया सांस्कृतिक विविधता के लिए भी पहचानती है। हमारी सफलता तब है जब वेनिस के लोग कहें कि हम पश्चिम के उदयपुर हैं।
देश के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी के रूप में महाराणा प्रताप ने जो लड़ाई छेड़ी और अपनी अंतिम सांस तक किसी की अधीनता स्वीकार नहीं की। यह कहते हुए मुझे गर्वानुभूति है कि उस रक्त परंपरा को निभाने का प्रयास हमारे पूर्वज आज तक करते आए हैं और अंत समय तक करते रहेंगे।
मुझे यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं कि आज भी झीलों की नगरी के लोग सुबह उठकर गर्व महसूस करते होंगे कि उनका जन्म वीरों की इस धरती पर हुआ। महाराणा प्रताप ने स्वतंत्रता शब्द को जन्म दिया। उन्होंने पराधीनता स्वीकार नहीं कर देश में स्वाधीनता की अलख जगाई। असल राष्ट्रवाद हम महाराणा प्रताप से सीख सकते हैं। हमारी आज की युवा और भावी पीढ़ी को हमारी मिट्टी, हमारी संस्कृति की तरफ वापस आना होगा और वो तभी संभव है जब वे यहां के बारे में जानें। युवा उस संस्कृति की तरफ भाग रहे है, जहां सूरज भी डूब जाता है। हमें संस्कृति के संरक्षण के लिए काम करना होगा।
हमारा एक छोटा सा प्रयास है कि मेवाड़ की इस थाती को बरकरार रखकर पूर्वजों ने जो हमें अस्मिता, मान-सम्मान सौंपा है हम उसे आगे बढ़ाएं और युवाओं को भी इस ओर लाने में कुछ काम कर पाएं।
अन्त मॆ देश के ख्यातनाम प्रसिद्ध कवि व मेरे बड़े भाई श्री शैलेश जी लोढ़ा की सुन्दर कविता की पक्तियां उदधृत करना चाहूंगा ।

” ये धरा शौर्य की, प्रभु का प्रताप है|
शिराओं में दौड़ता, स्वतंत्रता का ताप है|
प्रताप का स्मरण कर लेना ही, हमारी पूजा है, जाप है”

आभार

Lakshayraj Singh Mewar of Udaipur
President
Maharana Pratap Smarak Samiti,
Moti Magri, Udaipur, Rajasthan, India

मेवाड़ के वासियों का प्रेम अपनी भूमि व धरोहरों से ठीक उसी तरह से है, जैसे एक बच्चे का अपनी माँ से होता है। हमारी धरोहर ही हमारा गौरव हैं और ये हमारे इतिहास-बोध को मज़बूत करती है । हमारी कला और संस्कृति की आधार शिला भी हमारे विरासत स्थल ही हैं। इतना ही नहीं हमारी विरासतें हमें उन सभी चीजों से भी रूबरू कराती हैं,जो वीरों द्वारा अपने प्राणौ की आहूति देने पर हमें मिली है। यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि हम अब तक अपने विरासत स्थलों के सामाजिक और सांस्कृतिक महत्त्व पर ही बात करते आए हैं , जबकि आने वाली पीढ़ी को अनेक वीर सैनिको एवं महाराणाओ द्वारा किए गए बलिदानों की अनवरत गाथा किस प्रकार हस्तांतरित करेंगे , यह एक सोच का विषय है। महाराणाओं में सर्व प्रथम व सर्वोपरी वीर शिरोमणि ,प्रातःस्मरणीय ,मेवाड़ की आन बान शान के प्रतीक, एवं देश के प्रथम स्वतन्त्रा सेनानी महाराणा प्रताप का नाम आता है। जिनका जन्म ज्येष्ठ शुक्लपक्ष तृतीया,विक्रम संवत 1597 को हुआ। उनके स्मरण हेतू महाराणा प्रताप स्मारक स्थल का निर्माण मेवाड़ की धरा पर फतह सागर के किनारे स्थित मोती मगरी नामक पहाड़ी पर आज से तकरीबन 60 वर्ष पूर्व तत्कालीन महाराणा भगवत सिंह जी मेवाड़ ऑफ उदयपुर के कर कमलों द्वारा किया गया। महाराणा प्रताप स्मारक अपनी शिल्प कला का एक अनूठापन लिए हुए है जिसका शब्दों में वर्णन करना अत्यन्त ही कठिन है। जिसे देखकर ही इसके वैभव अनुभव किया जा सकता है। इसका चहुंमुखी विकास का अनवरत प्रयास महाराणा प्रताप स्मारक समिति के मुख्य संरक्षक श्रीजी अरविंद सिंह जी मेवाड़ ऑफ उदयपुर द्वारा दिए गए मार्गदर्शनानुसार जारी है।

मै मेवाड़ के राज परिवार एवं महाराणा प्रताप के वशंज महाराज कुमार श्री लक्ष्यराज सिंह जी मेवाड़ ऑफ उदयपुर, अध्यक्ष, महाराणा प्रताप स्मारक समिति, मोती मगरी,उदयपुर का अत्यंत ही आभारी हूँ जिन्होंने मुझे इस अन्तरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त स्मारक की सेवा में अपनी आशानुरूप कार्य करने का दायित्व दिया है ।

मैं अपने सन्देश मे मेवाड़ एंव समस्त भारत वासियों से यही आग्रह करना चाहूंगा कि मेवाड़ की इस वीर भूमि एवं महाराणा प्रताप स्मारक की ख्याति देश के प्रत्येक कोने में पहुँचाने का सतत प्रयास करें।

आभार

S. K. Sharma
Secretary
Maharana Pratap Smarak Samiti,

Moti Magri, Udaipur, Rajasthan, India